इतिहास
सन 1946 में देश के दूरदर्शी नेताओं ने युद्धोत्तर औद्योगिक विकास को समर्थन देने हेतु उच्च तकनीकी संस्थानों की स्थापना का विचार किया। नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में एक समिति ने देश के विभिन्न हिस्सों में इन संस्थानों की स्थापना की अनुशंसा की। पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भा. प्रौ. सं. / आईआईटी) मई 1950 में खड़गपुर में स्थापित किया गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में भा. प्रौ. सं. खड़गपुर के प्रथम दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि ये प्रौद्योगिकी संस्थान देश की तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने में सहायक होंगे।
1959-1960 के दौरान बॉम्बे, दिल्ली, कानपुर और मद्रास में चार भा. प्रौ. सं. स्थापित किए गए। इसके पश्चात, 15 सितंबर 1961 को भारत की संसद ने प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम पारित किया, जिसके अंतर्गत भा. प्रौ. सं. खड़गपुर को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया और इसे स्वायत्त विश्वविद्यालय का दर्जा भी दिया गया।इसके बाद, भा. प्रौ. सं. गुवाहाटी की स्थापना 1994 में हुई और रुड़की विश्वविद्यालय को 2001 में भा. प्रौ. सं. का दर्जा देकर भा. प्रौ. सं. रुड़की नाम दिया गया।
देशभर में आठ नए भा. प्रौ. सं. स्थापित करने का निर्णय कैबिनेट द्वारा लिया गया, जिसकी घोषणा मानव संसाधन विकास मंत्री ने 28 मार्च 2008 को की। भा. प्रौ. सं. भुवनेश्वर, गांधीनगर, हैदराबाद, जोधपुर (पूर्व में भा. प्रौ. सं. राजस्थान), पटना और रोपड़ की स्थापना 2008 में हुई, जबकि भा. प्रौ. सं. इंदौर और मंडी ने अपना पहला सत्र 2009 में शुरू किया।
1956 से अब तक के दशकों में, भा. प्रौ. सं. ने गुणवत्तापूर्ण तकनीकी स्नातक शिक्षा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्याय बना लिया है, जिसका मुख्य कारण यहां का शैक्षणिक वातावरण है। भा. प्रौ. सं. जोधपुर का प्रयास इस ब्रांड छवि को बनाए रखने का है, जिसे पिछले 60 वर्षों में सावधानीपूर्वक बनाया गया है, और अब इसका ध्यान विश्वस्तरीय, प्रौद्योगिकी-प्रेरित स्नातकों को तैयार करने पर केंद्रित है, जो राष्ट्र के विकास में योगदान देंगे।